उन्हीं घर और किताबों के लिये

राज़ नवादवी: एक अपरिचित कवि की कृतियाँ, Hindi Poetry

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सूखे फूल जो फिर खिल उठेंगे पेड़ों पे

क्षीण आशाएँ जो पुन: जाग जाएँगी हृदय में

भूले रास्ते

जो फिर से आ मिलेंगे मेरी असीम यात्रा पथों से

बिछड़े लोग, छूट गये घर, पुरानी किताबें

जिनसे फिर होगा समागम

जीवन के किसी अकल्पित क्षण में………

मैं जी रहा हूँ उसी फूल

उन्हीं आशाओं

उन्हीं रास्तों

उन्हीं लोग

उन्हीं घर और किताबों के लिये.

© राज़ नवादवी

एक तुम्हारे खत ने रोका है मुझे

राज़ नवादवी: एक अपरिचित कवि की कृतियाँ, Hindi Poetry

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नदी के वे द्वीप

जो दिशांतर में लुप्त नहीं हुए अभी

संबंधों के निष्कर्ष

जो लिखे नहीं गये अब तक

वे लोग जो अभी

आधे-अधूरे हैं विश्वासों की परिधि में

वे आहटें

जिनके सोते से जागने का भय

आशंकाओं ने संभाल रखा है अब तक

दूरियों के गहराये भँवर

जिनमें अभी शेष नहीं हुआ है सब कुछ

आशा-निराशा की वीथि

सोते जागते के सपने

सच और झूठ के झगड़े….

अपनी डायरी को जब कभी फेंकना चाहा

एक तुम्हारे खत ने रोका है मुझे

@ Raz Nawadwi

तुम्हें भूल सकता हूँ …….

राज़ नवादवी: एक अपरिचित कवि की कृतियाँ

मैं सोचता तो हूँ

परिस्थितियों से हार जाऊँ,

तुम्हें भूलजाऊँ;

मैं चाहता तो हूँ

तनावों के असंपादित अध्यायों से

दूर निकल जाऊँ,

कहीं एक शब्द, एक वाक्य बनकर

इस निस्सीम व्योम में

किन्हीं वायव्य माध्यमों से उच्चरित होकर

अपनी अस्मिता की समिधा जलाऊँ;

मैं चाहता तो हूँ

कि क्रिया-अनुक्रिया के

अनादिकालजन्य आवर्त्तों से

मन:स्थितियों की प्रसंविदा तोड़ डालूँ

जहाँ, न मन की इच्छाओं का प्रवेश है

न व्यथा, न पश्चाताप का उद्भव

एक ऐसे ही कालबिंदु पे

अपना सत्त्व विसर्जित कर दूँ

मैं चाहता तो हूँ

कोई एक निर्जन निविड़ रात

व्यथाओं के शव ढोती

एक निश्शब्द निर्वाक दोपहरी

अथवा, उदासीन मनोभावों सी एकाकी संध्या-

इनकी दीर्घाओं में बैठकर

संकल्पों का काव्य रचूँ

जिसके हर शब्द में

विस्मृति की तंद्रा भर दूँ

मैं चाहता तो हूँ

परिवर्तन के नए प्रभात तक

अपने आर्त्त स्वरों का आलाप करूँ

और फिर निद्रालस होकर

स्वप्नों के निलय में

शेष हो जाऊँ

मैं चाहता तो बहुत कुछ हूँ…..

अपनी इच्छाओं के पराभाव के दीर्घ इतिहास में

परिस्थितियों के कठोर आघातों से

संकल्प-विकल्प का जो एक क्रम

अब तक अविच्छिन्न बना रहा

यदि कभी उनके प्रदेशों से दूर निकल सकूँ

तो कदाचित्

तुम्हें भूल सकता हूँ ।

© राज़ नवादवी

सोशल वर्क हॉस्टल, नई दिल्ली

०८/०८/१९९३

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शून्य से आपादित जीवन में…….

राज़ नवादवी: एक अपरिचित कवि की कृतियाँ

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अनुभूतियों की शिराओं में

तुम्हारे प्रेम की आँच अब भी  शेष है

और

संवेदनाओं की धमनियाँ अब भी

तुम्हारे आकर्षण का आस्वाद

अहर्निश ढोती हैं

 

जीवन की विषमताओं का गरलपान करते हुए

तुम्हारी अनेकश: उपेक्षाओं का प्रहार सहते हुए

मन के कोने में

प्रेम का जो इक दीप जला रक्खा है

उसने सदैव

संध्यानुगामी, क्लान्त, विषण्ण मनोभावों को

नित नूतन ऊष्माओं से संपृक्त किया है

 

जीवन के बंद हो रहे अध्यायों में

तुम्हारे नाम का जो एक शब्द

कभी लिख छोड़ा था

उसकी अर्थप्रवाहिता अब भी

मेरी चिन्तना को

नया ओज देती है

 

ये जानते हुए भी

कि तुम कहीं नहीं हो

और दिक्कालातीत अंतराकाशों में

तुम्हारी चंचल स्मिति की उर्मिया भी

संभवतः  खो चुकी हैं

ऐसे शून्य से आपादित जीवन में मैंने

इन्हीं ,

आशा की शेष हो रही किरणों का

व्यापार किया है ।

 

© राज़ नवादवी

न्यूकेम फैक्ट्री, फ़रीदाबाद

(०३/०८/१९९३)