वो आँखें थी या ख्वाब के बगूले,
वो जुल्फें थीं या रात के समंदर की लहरें,
वो होंठ थे या सेब तराशे हुए,
वो चेहरा था या किसी नदी का सुनहरा टुकड़ा,
वो कामत थी या लहलहाते फसल का खेत,
उसका पैरहन था या जिस्म के तनासुब में बनाया कालिब,
उसकी नज़र थी या कि कोई नीली बर्क,
उसकी हंसी थी या प्यार का गुदगुदाता ऐतेराफ़,
उसकी चाल थी या किसी सपेरे की हिलती बीन,
उसके कॉल थे या ख्वाब से जागती अंगड़ाई,
उसकी उदासी थी या मीलों लंबा पहाड़ का दामन,
उसकी खुशी थी या कहकशाँ में भीगे सितारे,
उसका लम्स था या किसी शिफागर की दवा,
उसका साथ या चांदनी रात में रातरानी से लिपटे नाग.
वो नही है आज… कहीं भी आसपास,
उसकी खबर भी नहीं मिली एक मुद्दत से कुछ ख़ास,
न कोई उम्मीद ही है अब उसके मिलने की
रुत भी जा चुकी है ज़िंदगी बदलने की
© राज़ नवादवी
कामत- बदन; पैरहन- कपड़ा; तनासुब- अनुपात; कालीब- साँचा; बर्क- बिजली; ऐतेराफ़- स्वीकारोक्ति; कॉल- बोल; कहकशाँ- आकाशगंगा; लम्स- स्पर्श; शिफागर- वैद्य, डॉक्टर; मुद्दत- समय; रुत- ऋतु, मौसम