अधूरी चाहत का कोई चेहरा नहीं होता

मेरी डायरी के पन्ने

two_Love_Whooping_Cranesअधूरी चाहत का कोई चेहरा नहीं होता, ये कोई रिश्ता निभाया नहीं होता. न इसका कोई बदन होता है न कोई लिबास. न होते हैं पुराने कपड़ों में बोसीदा इसके एहसास. न टूटी चूड़ियों में दबी होती है इसकी खनक, न पाई जा सकती है घर के सामानोअसबाब में लिपटे लम्सों में इसकी रौनक. न होती हैं ज़मीन पे लिखी इसके नक्श-ओ-निशान की रुबाइयां, और न ही बालकनी से सटे सब्ज़ा-ओ-शज़र में होती हैं इसके माज़ी की परछाइयां!

अधूरी चाहत का कोई गवाह नहीं…लोकतक झील के पानी पे तुम्हारी उनींदी उँगलियों से उकेरे गए सोये-जागते ख़्वाबों के हिरन की मानिंद हमारे तुम्हारे प्यारे के हिरन भी वहीं के जंगलों में खो गए हैं. बस, इस खोये प्यार की आँखों की डूबी उम्मीदों की चमक से हमारे तुम्हारे दिल के महल रौशन हैं…बाकी तो सब तारीख़ के खंडहरों की सजाई इमारत.

हमारा अधूरा प्यार ही सही, सलामत रहे…!

@ राज़ नवादवी: मेरी डायरी के पन्ने

भोपाल ०४/०७/२०१४ पूर्वाह्न ११.०७ बजे

लिबास- कपड़ा; बोसीदा: पुराना; लम्स- स्पर्श; रुबाई- कविता की एक शैली; सब्ज़ा-ओ-शज़र- हरियाली और पेड़; माज़ी- अतीत; लोकतक झील- इम्फाल के पास की इक मशहूर झील; मानिंद- तरह; तारीख़- इतिहास